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Sunday, May 28, 2017

कल पत्रकारिता में 43 बरस हो गए

कल पत्रकारिता में 43 बरस हो गए 



पता ही नहीं लगा समय कैसे गुजर गया और कल मुझे पत्रकारिता में 43 बरस हो गए.सिर्फ 13 बरस की उम्र में मैंने दिल्ली के तब के मशहूर साप्ताहिक 'सेवाग्राम' से  पत्रकारिता की अपनी यात्रा शुरू की थी.संवाददाता तो 30 अप्रैल को ही बन गया था लेकिन अखबार में  पहली बार नाम और मेरा यही फोटो 27 मई को प्रकाशित हुआ.इसीलिए इस दिन को अपने इस सफ़र की सालगिरह मानता हूं.'सेवाग्राम' के बाद 1978 में 17 बरस की उम्र में मैंने डॉ हरिवंश राय बच्चन के संरक्षण में अपना पत्र 'पुनर्वास' शुरू कर दिया था,जो देश में सबसे कम उम्र के संपादक -प्रकाशक होने का एक रिकॉर्ड भी है.हालांकि बाद में  यह पत्र बंद कर देना पड़ा और मुझे 1982 में दिल्ली के नवभारत टाइम्स में उपसंपादक की  नौकरी मिल गयी.लेकिन जब मुझे देशभर के सभी  प्रतिष्ठित समाचार समूह से आये दिन लिखने और कॉलम के प्रस्ताव मिलने लगे तो मैंने कुछ समय बाद यह नौकरी छोड़ दी और नवभारत टाइम्स सहित टाइम्स ऑफ़ इंडिया, सांध्य टाइम्स ही नहीं धर्मयुग, दिनमान, वामा , पराग और ऐसे ही  इंडिया टुडे और हिंदुस्तान, हिंदुस्तान टाइम्स साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, पांचजन्य, जनसत्ता, राजस्थान पत्रिका,  दैनिक जागरण, अमर उजाला, आज, स्वतंत्र भारत, दैनिक नवज्योति,पंजाब केसरी, प्रभात खबर, विश्वामित्र, नई दुनिया और हरिभूमि सहित कुछ में कॉलम और कुछ में सामान्यतः  बरसों नियमित लिखता रहा,कुछ के लिए आज भी बराबर लिख रहा हूं..दैनिक ट्रिब्यून और लोकमत समाचार अखबार तो जब से शुरू हुए तब से उनमें लिख रहा हूं.यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मैंने देश के लगभग तमाम बड़े संपादकों के साथ काम किया है.एक अच्छी बात यह भी  है कि मैं बहुत विषयों पर लिखता रहा हूं.मैंने कृषि पत्रकारिता से शुरुआत की लेकिन राजनीति, खेल, स्वास्थ्य, नृत्य, संगीत, रंगमंच  धर्म, विज्ञान, शिक्षा, परिवहन, जल, संचार, पर्यटन सभी पर लिखा और अब भी लिख रहा हूँ.  हालांकि फिल्म-टीवी  पत्रकारिता विशेषज्ञता के रूप में उभरती रही है.उसका एक कारण यह भी है कि देश में टीवी पर नियमित पत्रकारिता की शुरुआत सबसे पहले मैंने ही की थी.सन 1981-82 में ही मुझे  अहसास हो गया था कि टीवी आने वाले दिनों में क्रांति ला देगा.टीवी को लेकर आज जैसी पत्रकारिता प्रचलित है उसके अधिकांश फॉरमेट मैंने ही तैयार किये थे.विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कॉलम और नियमित लेखन के साथ मैंने 1993 में अपने 'पुनर्वास' साप्ताहिक को फिर शुरू किया जो अब अपने पुनर्प्रकाशन के  25 वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है.इस सबके साथ मैं कुछ प्रमुख टीवी  चैनल के साथ पेनेलिस्ट के रूप में भी जुड़ा हूं, पीआईबी के लिए भी लिख रहा हूँ और बीच बीच में टीवी प्रोडक्शन और रेडियो के साथ भी जुड़ता रहता हूं.जो पुराने मित्र हैं वे सब मेरी इस यात्रा को जानते ही हैं लेकिन आज सोचा जो मुझे कम जानते हैं उनके साथ आज अपने अब तक के सफ़र को साझा कर लूं. हो सकता है इस बहाने कुछ  दोस्तों, शुभ चिंतकों  से दिली शुभकामनायें भी मिल जाएँ  - प्रदीप सरदाना .


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