महादेव की नगरी से मोदी और केजरी
प्रदीप
सरदाना
भारतीय जनता पार्टी
ने वाराणसी लोकसभा सीट से नरेंद्र मोदी को टिकट देकर देकर पिछले काफी समय से चली आ
रही अटकलों को विराम दे दिया. इस घोषणा से जहां वाराणसी में दीवाली सा माहौल बन
गया वहां आम आदमी के प्रमुख संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने भी वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है.
देश भर में जिस तरह मोदी लहर चल रही है उससे
मोदी को हराने का सपना देखना ही केजरीवाल की
बड़ी भूल होगी लेकिन केजरीवाल इससे कम से कम मीडिया में छाए रहेंगे.दिल्ली
में 49 दिन बाद ही जिम्मेदारियों से भागकर अपना इस्तीफ़ा दे अपनी जिंदगी की सबसे
बड़ी गलती करके भी केजरीवाल खुद
प्रधानमंत्री का सपना देखने का साहस कर रहे हैं.लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि काठ की
हांडी एक बार ही चढ़ती है बार बार नहीं.जनता इतनी भोली नहीं कि हर बार उनके बहकावे
में आ जायेगी.हालांकि केजरीवाल एक ओर देश भर में अपने ज्यादा से ज्यादा उमीदवार
खड़ा करके अपनी बनावटी हवा बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
दिल्ली में किसी के समर्थन से सरकार न बनाने पर
अपने बच्चों की कसम तक खाने वाले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में भी जनता से पूछने
का नाटक किया और सत्ता के लिए सभी कसमों वायदों को भूलकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बन
बैठे.लेकिन जनता से किये वायदों को अंशमात्र भी पूरा न कर सकने वाले केजरीवाल ने
मुख्यमंत्री बनते ही देश का प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने शुरू कर दिए.इस चक्कर
में उन्होंने सारे नियम टाक पर रखकर उस जनता के दुःख दर्द की रत्ती भर भी परवाह
नहीं की जिनके बल पर उन्हें दिल्ली में 28 सीट प्राप्त हुईं थी.उस जनता को बहला
फुसलाकर सर्दी भरी रात में फिर अपने साथ धरने पर बिठवा दिया.वह भी एक बेकार की जिद
और अपने एक मंत्री की गलती को छिपाने के
लिए.लेकिन जब केजरीवाल के इस धरने की सभी ओर आलोचना हुई और केंद्र सरकार और दिल्ली
के उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी उनकी फिजूल की मांगें मानने से इनकार कर दिया तो
केजरीवाल के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी.अपने धरने को अपना आत्मघाती कदम बनता देख
केजरीवाल ने बिना मांगें मनवाए ही अपना धरना ख़त्म कर दिया.लेकिन तब तक केजरीवाल के
एक बड़े प्रेमी वर्ग का उनसे मोह भंग हो गया था.ऐसे में केजरीवाल ने अपना पिंड छुड़ाने के लिए लोकपाल बिल को विधानसभा
में असंवैधानिक तरीके से पेश करने की तैयारी कर ली क्योंकि वे जानते थे कि इस गलत
काम में न कांग्रेस उनका साथ देगी और न भाजपा और न उपराज्यपाल और न ही अन्य कोई
संवैधानिक संस्था.इसी आड़ में जनता की आँखों में धूल झोंक कर केजरीवाल ने इस्तीफा
दे दिया.
यहाँ सबसे बड़ा सवाल
यह उठता है कि जब केजरीवाल ने अपनी सरकार दिल्ली की जनता से पूछ कर बनायीं तो तो
इस्तीफा देने के लिए जनता से जनमत क्यों नहीं कराया? क्योंकि केजरीवाल जानते थे कि
जनता उन्हें पीठ दिखाकर भागने की इज़ाज़त नहीं देगी.ऐसे में यहाँ फिर सवाल उठता है
कि वाराणसी के मामले में वह फिर से जनता से पूछने का नाटक क्यों करते
रहे .जबकि सच्चाई यह है कि वह हमेश अपने मन की करते हैं लेकिन बन्दूक जनता के कन्धों पर रखकर चलाते हैं.जहां फायदे की
गुंजायश हो वहां जनता से हां या ना भरवालो
और जहां नुक्सान हो वहां चुपचाप खिसक लो.
अब फिर से लौटते है
नरेंद्र मोदी पर. बनारस से मोदी के सामने केजरीवाल लड़ें या कोई और भी इससे मोदी की सेहत पर ख़ास असर नहीं पड़ने
वाला.लेकिन मोदी के वाराणसी पहुँचने से भाजपा के 272 मिशन को जरुर मदद मिलेगी.मोदी
को जब भाजपा ने अपना प्रधानमन्त्री उमीदवार घोषित किया था उससे कुछ पहले ही मोदी
ने उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें मज़बूत करने
के लिए अपने खासमखास अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेज दिया था. इसी
से ऐसे संकेत मिल गए थे कि मोदी लखनऊ और वाराणसी में से किसी एक जगह से चुनाव लड़
सकते हैं.
शाह ने संभावनाओं को तलाशते हुए वाराणसी को मोदी
के लिए हर दृष्टिकोण से सुरक्षित और महत्वपूर्ण माना. उसीके बाद नरेंद्र मोदी ने
वाराणसी में अपनी महा रैली की.तभी मोदी ने
सोमनाथ से विश्वनाथ की बात कही और काशी में हर हर महादेव के सदियों से
गूंजते नारे के साथ हर हर मोदी का नारा भी तभी बुलंद हुआ. मोदी ने बनारस के विशाल
साड़ी उद्योग की टूटती साँसों को ओक्सीजन
दे अपने गुजरात के सूरत जैसा सफल वस्त्र
उद्योग बनाने की बात कह, वहां के बुनकरों
का अपने प्रति विश्वास जगाया.यहाँ बड़ी बात
यह भी है कि बनारसी साड़ी के ज्यादातर बुनकर मुस्लिम हैं जिन्हें समाजवादी
पार्टी,कांग्रेस का मतदाता समझा जाता है.लेकिन अब मुस्लिम मतदाता का भी मुज्ज़फर
नगर की घटना के बाद सपा से मन खट्टा हो गया है.उधर मुस्लिम मतदाता अपना आर्थिक
विकास चाहता है इस समुदाय का एक बड़ा वर्ग यह समझने लगा है कि सियासी दल उनका मतदान
के समय खूब इस्तेमाल करते हैं लेकिन बाद में उनकी कोई खैर खबर भी नहीं लेता.ऐसे
में वाराणसी के मुसलमान सूरत उद्योग को देखते हुए अपने बनारस के उद्योग के
पुनर्वास के मामले में मोदी को भी आजमा सकते हैं क्योंकि मुस्लिमों ने अन्य दलों
को तो काफी आजमा लिया लेकिन भाजपा को ख़ास नहीं अपनाया.
उधर नरेंद्र मोदी के
वाराणसी से चुनाव लड़ने से पूरे उत्तर प्रदेश और खासतौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश को
लाभ होने की बड़ी सम्भावना है.यहाँ तक इसका असर बिहार पर भी पड़ सकता है.मोदी के
वाराणसी पहुँचने की घोषणा से ही जैसा उत्साह बना है उससे ऐसी संभावनाओं को बल
मिलता ही है.
हालांकि मोदी वाराणसी के साथ गुजरात के वड़ोदड़ा से भी
लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.इसलिए वाराणसी से
कुछ लोगों के ऐसे विचार भी सुनने को आ रहे है और इन विचारों को विपक्ष भी उठा सकता
है कि मोदी गुजरात और वाराणसी दोनों जगह से जीतेंगे तो बाद में क्या वह वाराणसी की
सीट छोड़कर गुजरात के सांसद तो नहीं हो जायेंगे.लेकिन अभी के समीकरण बताते है कि
मोदी दोनों जगह से जीतने पर भी वाराणसी नहीं
छोड़ेंगे क्योंकि गुजरात तो उन्हें एक मुख्यमंत्री के रूप में बरसों से आजमा चुका
है लेकिन वाराणसी उन्हें पहली बार आजमा रहा है.वाराणसी से जीत के बाद त्यागपत्र
देने से उनकी उत्तर प्रदेश में भी छवि कुछ
कमजोर हो सकती है.जबकि भाजपा इस विशाल प्रदेश में अपनी छवि,अपनी स्तिथि कतई कमजोर नहीं होने देना चाहेगी.सभी जानते हैं कि देश को सर्वाधिक
प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश ने ही दिए हैं और यूँ भी दिल्ली के सिंहांसन को जीतने
के लिए उत्तर प्रदेश को जीतना भी जरुरी
है.मोदी यूँ ही सोमनाथ से विश्वनाथ की
नगरी नहीं पहुंचे.
प्रदीप सरदाना
16 मार्च 2014 को ‘पुनर्वास’ साप्ताहिक में आवरण कथा के रूप में प्रकाशित मूल लेख, 28 मार्च 2014 को किये गए संशोधन सहित.
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